मार्गशीर माह के प्रत्येक गुरुवार को ओडिशा में बड़े उत्साह के साथ माणबसा गुरुबार मनाया जाता है। इस दिन हर घर के मुख्य द्वार को चावल के पेस्ट से बने सुंदर झोटी-चिता डिज़ाइन से सजाया जाता है। ये डिज़ाइन कमल के फूल और देवी लक्ष्मी के पदचिह्नों के प्रतीक होते हैं, जो घर की महिलाओं द्वारा बनाए जाते हैं। यह परंपरा देवी लक्ष्मी को घर में आमंत्रित करने का प्रतीक मानी जाती है।
माणबसा गुरुबार ओडिशा में हिंदू समाज के लिए एक प्रमुख त्योहार है। यह देवी लक्ष्मी की पूजा के साथ जुड़ा हुआ है, जिन्हें परिवार की समृद्धि और फसलों की देवी माना जाता है। इस त्योहार का सीधा संबंध फसल कटाई के मौसम से है, जब धान की कटाई और भंडारण होता है। इस दिन घरों की साफ-सफाई पर विशेष ध्यान दिया जाता है, क्योंकि मान्यता है कि देवी लक्ष्मी केवल स्वच्छ घरों में निवास करती हैं।
‘माणबसा’ नाम का मूल ‘माण’ शब्द से है, जो प्राचीन ओडिशा में धान मापने की एक इकाई थी। प्राचीन समय में माण का उपयोग धान मापने के लिए टोकरियों और बर्तनों में किया जाता था। यह त्योहार इसी परंपरा का प्रतीक है, जिसमें फसल के भंडारण और समृद्धि का उत्सव मनाया जाता है।
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इस दिन घरों के प्रवेश द्वार और सीढ़ियों को गोबर और चावल के पेस्ट से सजाया जाता है। पूजा में दो ‘माण’ धान, काला चना, लाल चूड़ियाँ, सिंदूर, और देवी लक्ष्मी की मूर्ति या चित्र स्थापित किए जाते हैं। पूजा में विशेष व्यंजन जैसे कनिका, दालमा, खीरी, और पखाल का भोग लगाया जाता है।
माणबसा गुरुबार की कथा प्राचीन ग्रंथ लक्ष्मी पुराण से प्रेरित है। प्राचीन समय में, समाज में अछूतों को धार्मिक पूजा-पाठ और अनुष्ठान करने का अधिकार नहीं था। उसी काल में, श्रीया नामक एक अछूत महिला ने हिम्मत दिखाते हुए भगवान की पूजा की और देवी लक्ष्मी का आशीर्वाद प्राप्त किया। देवी लक्ष्मी ने इस भेदभाव को देखकर अछूतों को पूजा-अर्चना के लिए प्रेरित किया और समाज में व्याप्त असमानता को समाप्त करने का प्रयास किया। हालांकि, यह घटना भगवान बलभद्र को स्वीकार्य नहीं थी।
असली कहानी तब शुरू होती है जब देवी लक्ष्मी, अपने भाई बलभद्र के कहने पर, भगवान जगन्नाथ से अलग हो जाती हैं। क्रोधित और आहत लक्ष्मी, जगन्नाथ मंदिर छोड़कर समुद्र तट की ओर चली जाती हैं। वहां, वह भगवान विश्वकर्मा को बुलाती हैं और उन्हें एक भव्य महल बनाने का आदेश देती हैं, जिसे विश्वकर्मा तुरंत पूरा कर देते हैं। इसके बाद, लक्ष्मी ने ‘अष्ट-बेताल’ (आत्माओं) को बुलाया और उन्हें जगन्नाथ मंदिर में तबाही मचाने का आदेश दिया।
लक्ष्मी के आदेश का पालन करते हुए, बेताल मंदिर गए, भंडारण में रखा सारा भोजन खा गए, सभी अनाज नष्ट कर दिए और खजाने, बर्तन, फर्नीचर का एक-एक टुकड़ा उठा ले गए। उनका कार्य यहीं समाप्त नहीं हुआ। लक्ष्मी ने निद्रा देवी (नींद की देवी) को बुलाकर भगवान जगन्नाथ और भगवान बलभद्र को अगले पूरे दिन सोने के लिए मजबूर कर दिया।
इसके बाद, लक्ष्मी ने देवी सरस्वती को बुलाया और उनसे प्रार्थना की, “हे सरस्वती, आप जानती हैं कि क्या हुआ है। मेरे पति और उनके भाई ने जो पाप किया है, उसका उन्हें दंड भुगतना चाहिए। यदि उन्हें दंडित नहीं किया गया, तो इस धरती पर कोई भी पुरुष अपनी पत्नी का सम्मान नहीं करेगा। महिलाओं को सताया जाएगा, और ऐसा मैं कभी नहीं होने दूंगी।” सरस्वती ने मुस्कुराकर सहमति जताई।
अगले दिन, जब भगवान जगन्नाथ और भगवान बलभद्र जागे, तो उन्हें आश्चर्य हुआ। वे भोजन की तलाश में सड़कों पर भीख मांगने लगे, लेकिन नगरवासियों ने उन्हें पहचानकर भगा दिया। नगर में हर ओर लोगों की आवाज में देवी सरस्वती का वास था, जो कहती रहीं, “लक्ष्मी-द्रोही का यहां कोई स्थान नहीं है।”
भूख और प्यास से कमजोर दोनों भाई अंततः उस महल में पहुंचे जिसे लक्ष्मी ने बनवाया था। वहां दासियों ने उन्हें पहचानकर प्रवेश देने से मना कर दिया। मजबूर होकर, भाइयों ने ब्राह्मणों का वेश धारण किया और वेद मंत्रोच्चार करने लगे।
लक्ष्मी ने दासियों से ब्राह्मणों को भीतर बुलाने और भोजन कराने को कहा। लेकिन दासियों को निर्देश दिया, “उनसे पूछो कि क्या वे चांडाल स्त्री के घर से भोजन स्वीकार करेंगे।” भूख से व्याकुल भाइयों ने कहा, “हां, हम करेंगे। कृपया हमें कुछ अनाज और बर्तन दे दीजिए। हम अपना भोजन खुद पकाएंगे।”
जब भाइयों ने खाना पकाने का प्रयास किया, तो लक्ष्मी ने अग्निदेव को रोक दिया। आग नहीं जल पाई। निराश और थके हुए भाइयों ने लक्ष्मी से क्षमा मांगने का निर्णय लिया। दासियों ने उन्हें भीतर बुलाया, और लक्ष्मी ने स्वयं उनके लिए भोजन तैयार किया।
भोजन का स्वाद पहचानकर, भगवान जगन्नाथ और बलभद्र को एहसास हुआ कि वे लक्ष्मी के महल में हैं। बलभद्र ने जगन्नाथ से कहा, “हमने लक्ष्मी का अपमान करके बड़ा पाप किया है। उनसे क्षमा मांगो।”
जगन्नाथ ने लक्ष्मी का हाथ पकड़कर उनसे क्षमा मांगी। लक्ष्मी ने शर्त रखी, “आपको वचन देना होगा कि आपके राज्य में कोई जातिगत भेदभाव नहीं होगा और सभी को समानता का अधिकार मिलेगा।” जगन्नाथ ने कहा, “ऐसा ही होगा।”
माणबसा गुरुबार न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि यह जातिवाद और सामाजिक असमानता के खिलाफ एक प्रेरणादायक संदेश देता है। यह कथा बताती है कि ईश्वर की दृष्टि में सभी समान हैं। देवी लक्ष्मी ने अपने कार्यों से समाज में महिला सशक्तिकरण और समानता की स्थापना का संदेश दिया।
माणबसा गुरुबार का पर्व न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि यह सामाजिक जागरूकता और महिला अधिकारों का संदेश भी देता है। यह त्योहार हमें सिखाता है कि समृद्धि और शांति तभी संभव है, जब हम स्वच्छता, समानता, और महिलाओं का सम्मान करें। देवी लक्ष्मी की पूजा के माध्यम से यह पर्व हमें जीवन में संतुलन और समर्पण का महत्व सिखाता है।
इस पर्व की अद्भुत कहानी और इसके संदेश हर व्यक्ति को अपने जीवन में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए प्रेरित करते हैं। माणबसा गुरुबार का उत्सव हमें एक आदर्श समाज की ओर बढ़ने की प्रेरणा देता है।
FAQ
Q-1 What is the significance of Manabasa Gurubar?|| माणबसा गुरुबार का क्या महत्व है?
माणबसा गुरुबार ओडिशा का एक महत्वपूर्ण पर्व है, जो मार्गशीर्ष महीने के प्रत्येक गुरुवार को मनाया जाता है। यह त्योहार देवी लक्ष्मी की पूजा के लिए प्रसिद्ध है, जो समृद्धि और सुख-शांति की प्रतीक हैं। इस दिन घरों को स्वच्छ और सुंदर झोटी-चिता डिज़ाइन से सजाया जाता है। मान्यता है कि देवी लक्ष्मी स्वच्छ घरों में निवास करती हैं। फसल कटाई से जुड़ा यह पर्व कृषि प्रधान संस्कृति का प्रतिबिंब है। लक्ष्मी पुराण की कथा से प्रेरित, यह त्योहार सामाजिक समानता और महिला सशक्तिकरण का संदेश देता है, जो इसे धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से अद्वितीय बनाता है।
Q-2 How to celebrate manabasa gurubar?|| माणबसा गुरुबार कैसे मनाएं?
माणबसा गुरुबार मनाने की प्रक्रिया ओडिशा की सांस्कृतिक परंपराओं से गहराई से जुड़ी है। इस दिन घरों की साफ-सफाई कर चावल के पेस्ट से झोटी-चिता डिज़ाइन बनाए जाते हैं, जिनमें कमल के फूल और देवी लक्ष्मी के पदचिह्न प्रमुख होते हैं। पूजा स्थल पर माण (धान मापने की टोकरी) में मूंगा, चूड़ियाँ, हल्दी, कौड़ियाँ और फूल सजाए जाते हैं। देवी लक्ष्मी की पंचोपचार पूजा में दीप, धूप, नैवेद्य, और लक्ष्मी पुराण का पाठ किया जाता है। प्रसाद के रूप में विशेष पकवान तैयार किए जाते हैं। यह पर्व समृद्धि, सामाजिक समानता, और घर-परिवार की खुशहाली के लिए मनाया जाता है।
Q-3 Which God is in Margashirsha?||मार्गशीर्ष में कौन सा भगवान है?
मार्गशीर्ष मास, जो हिंदू पंचांग का आठवां महीना है, भगवान विष्णु को समर्पित है। इसे ‘मासानाम मार्गशीर्षोऽहम्’ कहकर श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान कृष्ण ने विशेष दर्जा दिया है। इस पवित्र महीने में भगवान विष्णु की पूजा और व्रत करना अत्यंत शुभ माना जाता है। मार्गशीर्ष मास में हर गुरुवार देवी लक्ष्मी की भी पूजा की जाती है, जो घर में समृद्धि और सुख का प्रतीक हैं। विशेष रूप से ओडिशा में, इसे “माणबसा गुरुबार” के रूप में मनाया जाता है। यह महीना ध्यान, भक्ति और धार्मिक अनुष्ठानों के माध्यम से आत्मिक शुद्धि और ईश्वर के प्रति समर्पण को प्रेरित करता है।
Q-4 What is the importance of Margashirsha Guruvar?|| मार्गशीर्ष गुरुबार का क्या महत्व है?
मार्गशीर्ष मास के गुरुबार का विशेष महत्व है, क्योंकि इसे देवी लक्ष्मी की कृपा प्राप्त करने के लिए पवित्र माना जाता है। यह पर्व विशेष रूप से ओडिशा में “माणबसा गुरुबार” के रूप में मनाया जाता है। इस दिन घरों की साफ-सफाई कर चावल के पेस्ट से झोटी-चिता बनाई जाती है, जो देवी लक्ष्मी को आमंत्रित करने का प्रतीक है। परिवार की समृद्धि, खुशहाली और दीर्घायु की कामना से देवी की पूजा की जाती है। यह दिन फसल कटाई से भी जुड़ा है और समाज में समानता, नारी सशक्तिकरण और भेदभाव को समाप्त करने का संदेश देता है।
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