श्रीमंदिर का राजभोग और छप्पन भोग में पणा भोग महत्वपूर्ण है। पणा भोग महाप्रभु की दैनिक नीति और कुछ विशेष पर्वों पर भी होता है। इसका एक और नाम ‘प्रपाणक’ है, जो अपभ्रंश में प्रपानक या पणा के रूप में जाना जाता है। मादलापांजी में वर्णित जानकारी के अनुसार, पहले श्रीमंदिर में पणा तैयार करने वाले सेवकों को ‘पणा सुआर सेवक’ कहा जाता था।
आमतौर पर श्रीमंदिर की भोग परंपरा में तीन प्रकार के पणा भोग होते हैं: दैनिक पणा, अणसर पणा और अधरपणा। रथ पर होने वाला अधरपणा सबसे बड़ा पणा भोग होता है। महाप्रभु रत्न सिंहासन, अणसर पिंडी, आड़प मंडप, स्नान मंडप और पहांडी बीजे के समय भी पणा भोग करते हैं।
आषाढ़ शुक्ल द्वादशी के दिन तीनों रथों पर स्वतंत्र रूप से अधर पणा भोग नैवेद्य होता है। पहले यह बड़ा पणा भोग दशमी, एकादशी और द्वादशी के दिन क्रमागत रूप से तीन दिनों तक होता था। परंतु समयाभाव के कारण अब यह पणा भोग केवल द्वादशी तिथि को ही होता है।
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यहां उल्लेखनीय है कि बड़े ओडिया मठ से प्राप्त प्राचीन हुकुमनामों के अनुसार, पहले बाहुड़ा दशमी के दिन तीन हांड़ी, एकादशी तिथि के दिन तीन हांड़ी और द्वादशी के दिन तीन हांड़ी इस प्रकार कुल नौ हांड़ी तालध्वज रथ पर विराजमान राम, कृष्ण और नंदिघोष के ऊपर मदनमोहन के लिए एक छोटी हांड़ी में पणा भोग होता था।
श्रीमंदिर की शास्त्रों में उल्लेख किया गया है कि अधरपणा दशमी के दिन रथ सिंहद्वार पर होने की बात है, किंतु समयाभाव के कारण एकादशी के दिन होता है। वर्तमान में समयाभाव के कारण बाहुड़ा यात्रा के बाद द्वादशी के दिन तीन हांड़ी अधर पणा भोग होता है।
परंपरा के अनुसार, अब राघवदास मठ, बड़े ओडिया मठ और श्रीमंदिर प्रशासन तीन हांड़ी मिलाकर कुल नौ हांड़ी अधरपणा भोग होता है। राम, कृष्ण और मदनमोहन को एक एक छोटी हांड़ी (बड़े मठ के कूड़ुआ में) अधर पणा भोग होता है।
महाप्रभु को अर्पित स्वतंत्र हांड़ी में अधर पणा रखा जाता है। यह हांड़ी बहुत प्राचीन समय से पुरी के कुम्भारपाड़ा में पारंपरिक कुम्भकार बनाते हैं। अक्षय तृतीया से यह हांड़ी निर्माण शुरू होता है। हांड़ी का रंग हल्का लाल होता है। श्रीजगन्नाथ की अधर हांड़ी की ऊंचाई 5 फुट, श्रीबलभद्र की 4.5 फुट, और सुभद्रा देवी की 4 फुट होती है। हांड़ी का मुंह या फंद 15 इंच व्यास का होता है। महाप्रभु की अधर ऊंची सदृश तुंभ आकृति की हांड़ी श्रीमंदिर में पहुंचती है।
उक्त अधर हांड़ी पणा भोग महाप्रभु को समर्पण के बाद रथ के पार्श्व देवी-देवता, यक्ष, किन्नर, चण्डी, चामुंडा आदि के लिए उत्सर्ग किया जाता है। कुछ लोगों के अनुसार यह रथ के पार्श्व देवी-देवता, ऋषि, गंधर्व और अशरीरी के लिए उत्सर्ग किया जाता है। शाक्त इसे महा पंचतंत्र विधि के रूप में मानते हैं। महाप्रभु को अर्पण के बाद रथ पर घंटी की सहायता से पूजा पण्डा सेवक अधरपणा भरी हांड़ियों को तोड़ देते हैं।
आम तौर पर दूध, जल, सर, छेना, कपूर, नवात, गोलमरिच, अलइच और पाचिला केले आदि सामग्री से अधरपणा तैयार होता है। दोनों मठ और श्रीमंदिर प्रशासन की ओर से अधर पणा के लिए आवश्यक सामग्री उपलब्ध कराई जाती है।
बड़े ओडिया मठ से 3 किलो सर, 3 किलो छेना, 300 ग्राम गोलमरिच, 180 ग्राम कपूर, 42 पाचिला केले, 42 ढ़ला कडुआ में नवात या चीनी (लगभग 5 किलो), नए नाली धरी मुंह वाले 5 हांड़िया गामुच्छा 9 और 3 अधर हांड़ी उपलब्ध कराई जाती है। श्रीमंदिर प्रशासन की ओर से 3 अधर हांड़ी, 3 बड़े मठ कूड़ुआ, 25 किलो 725 ग्राम चीनी, 30 सान मठ कूड़ुआ, छेना 6 किलो 125 ग्राम, देशी केले 80, अलइच 612 ग्राम, दूध लगभग 4 सेर, गोलमरिच 230 ग्राम, कपूर 50 ग्राम, 5 हाथ धली गामुच्छा 3 दिए जाते हैं। आमतौर पर प्रति रथ में रखी जाने वाली 3 अधर हांड़ी में से बीच की श्रीमंदिर प्रशासन द्वारा दी जाती है।
राघवदास मठ से अधरपणा भोग के लिए कूप से पानी लाने के लिए 20 बाल्टी, लगभग 50 ढ़ला कूड़ुआ, चीनी 42 किलो, जाली धली गामुच्छा 3, 3 अधर हांड़ी, देशी पाटकपुरा केला 1 गठरी, गोलमरिच 250 ग्राम, कपूर 10 भरी, छेना 3 किलो, सर 3 किलो, खीर 3 सेर दिए जाते हैं।
महासुआर बड़ी बड़ी हांड़ियों में इन सामग्रियों को मिलाकर पणा तैयार करते हैं और फिर महाप्रभु के समक्ष रखी बड़ी मला और मिट्टी से बनी अधर हांड़ी में धीरे-धीरे डालते हैं। पणा की शुद्धता के लिए उभय भीतरच्छ, तळूच्छ और पाळिया पुष्पाळक एक वस्त्र पकड़ कर महाप्रभु के सामने खड़े रहते हैं ताकि पणा की सामग्री अधर हांड़ी में डालते समय महाप्रभु पर न गिरे। पणा तैयार होकर हांड़ियों में रखा जाता है, फिर पूजा पण्डा सेवक इसे तीन रथों पर पंचोपचार विधि से अर्पण करते हैं। बाद में पणा हांड़ी को तोड़कर रथ के देवी-देवता को उत्सर्ग करते हैं। इस पणा भोग की तैयारी और अर्पण में लगभग 50 सेवक शामिल होते हैं।
मादलापांजी में पणा भोग के बारे में कहा गया है कि अमृत कुण्ड, छेना पणा, सर पणा, फाट पणा, आम्ब पणा, पनस पणा, टभा पणा गोलाई बोही आनी पंति में बांधी जाएगी। पर्व यात्राओं में जितना अमृत कुण्ड अङ्गवाश पणा होगा, उसे पंति में महासुआर को गिनाया जाएगा।
इस प्रकार श्रीमंदिर की भोग परंपरा में पणा भोग का स्वतंत्र और प्रसिद्ध स्थान है।
श्रीमंदिर में पणा भोग एक अत्यंत महत्वपूर्ण और पारंपरिक धार्मिक विधि है, जिसे महाप्रभु की दैनिक और विशेष पर्वों पर अर्पण किया जाता है। इस पणा भोग की विधि और उसकी धार्मिक महत्ता आज भी अनवरत चली आ रही है, जो भक्तों के लिए एक आध्यात्मिक अनुभव का स्रोत है।
FAQ
Q-1- अधरपना का क्या महत्व है?
अधर हांड़ी पणा भोग महाप्रभु को समर्पण के बाद रथ के पार्श्व देवी-देवता, यक्ष, किन्नर, चण्डी, चामुंडा आदि के लिए उत्सर्ग किया जाता है। कुछ लोगों के अनुसार यह रथ के पार्श्व देवी-देवता, ऋषि, गंधर्व और अशरीरी के लिए उत्सर्ग किया जाता है। शाक्त इसे महा पंचतंत्र विधि के रूप में मानते हैं। महाप्रभु को अर्पण के बाद रथ पर घंटी की सहायता से पूजा पण्डा सेवक अधरपणा भरी हांड़ियों को तोड़ देते हैं।
Q-2- अधरपना में क्या सामग्री होती है?
आम तौर पर दूध, जल, सर, छेना, कपूर, नवात, गोलमरिच, अलइच और पाचिला केले आदि सामग्री से अधरपणा तैयार होता है। राघवदास मठ, बड़े ओडिया मठ और श्रीमंदिर प्रशासन की ओर से अधर पणा के लिए आवश्यक सामग्री उपलब्ध कराई जाती है।
Q-3- अधरपणा के लिए हांड़ी की ऊँचाई कितनी होती है?
महाप्रभु को अर्पित स्वतंत्र हांड़ी में अधर पणा रखा जाता है। यह हांड़ी बहुत प्राचीन समय से पुरी के कुम्भारपाड़ा में पारंपरिक कुम्भकार बनाते हैं। अक्षय तृतीया से यह हांड़ी निर्माण शुरू होता है। हांड़ी का रंग हल्का लाल होता है। श्रीजगन्नाथ की अधर हांड़ी की ऊंचाई 5 फुट, श्रीबलभद्र की 4.5 फुट, और सुभद्रा देवी की 4 फुट होती है। हांड़ी का मुंह या फंद 15 इंच व्यास का होता है। महाप्रभु की अधर ऊंची सदृश तुंभ आकृति की हांड़ी श्रीमंदिर में पहुंचती है।
Q-4- कौन से सेवक अधरपणा को तैयार करते हैं?
महासुआर सेवक बड़ी बड़ी हांड़ियों में इन सामग्रियों को मिलाकर पणा तैयार करते हैं और फिर महाप्रभु के समक्ष रखी बड़ी मला और मिट्टी से बनी अधर हांड़ी में धीरे-धीरे डालते हैं। पणा की शुद्धता के लिए उभय भीतरच्छ, तळूच्छ और पाळिया पुष्पाळक एक वस्त्र पकड़ कर महाप्रभु के सामने खड़े रहते हैं ताकि पणा की सामग्री अधर हांड़ी में डालते समय महाप्रभु पर न गिरे। पणा तैयार होकर हांड़ियों में रखा जाता है, फिर पूजा पण्डा सेवक इसे तीन रथों पर पंचोपचार विधि से अर्पण करते हैं। बाद में पणा हांड़ी को तोड़कर रथ के देवी-देवता को उत्सर्ग करते हैं। इस पणा भोग की तैयारी और अर्पण में लगभग 50 सेवक शामिल होते हैं।
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