ओड़िया संस्कृति में खुदुरकुनी ओषा का पर्व हर अविवाहित लड़की द्वारा अपने भाइयों की मंगलकामना के लिए मनाया जाता है। यह पूजा ओड़िशा के हर कोने में बड़े उत्साह के साथ की जाती है। भाद्रपद मास के प्रत्येक रविवार को यह ओषा मनाई जाती है, जिसमें सात भाई और एक बहन की करुण कहानी जुड़ी होती है, जिसे तओपोई की कहानी के रूप में जाना जाता है। आइए इस प्राचीन त्योहार की पूरी कहानी जानें।
खुदुरकुनी ओषा ओड़िशा के बारह महीने तेरह त्यौहारों में से एक पारंपरिक पर्व है। कुछ इसे भालुकुनी ओषा तो कुछ ढिंकी ओषा भी कहते हैं। अविवाहित लड़कियां अपने भाइयों की दीर्घायु के लिए भाद्रपद महीने में मां खुदुरकुनी की पूजा करती हैं। यह पूजा गांवों में ढिंकी शालाओं में की जाती है। इसमें मां सिंहवाहिनी मंगला को खुदभजा (चावल) अर्पण किया जाता है। खुद से ही इस ओषा का नाम खुदुरकुनी पड़ा।
तओपोई अपने सात भाइयों में इकलौती और सबसे छोटी बहन थी। वे एक अमीर व्यापारी परिवार से थे। इकलौती बहन होने के कारण उसे उसके माता-पिता और सभी भाई और उनकी पत्नियाँ समान रूप से प्यार और लाड़-प्यार करती थीं। उसकी सभी माँगें तुरंत पूरी हो जाती थीं। एक बार उसने सोने का चाँद (सोने से बना चाँद के आकार का आभूषण) माँगा, जिसे उसके परिवार ने कुछ अड़चनों के बावजूद पूरा किया। सोने का चाँद पूरा होने तक उसके माता-पिता दोनों की मृत्यु हो गई। इसके बाद, परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत खराब हो गई और जब समुद्री यात्रा का समय आया, तो सभी सात भाई अपनी पत्नियों को अपनी बहन, तओपोई का अच्छी तरह से ध्यान रखने की चेतावनी देते हुए व्यापार के लिए निकल पड़े।
भाइयों के जाने के कुछ समय बाद, एक बूढ़ी ब्राह्मणी घर में आई और तओपोई की भाभियों को उसके खिलाफ भड़काने लगी। भाभियां उसके साथ बुरा व्यवहार करने लगीं और उसे घर के कामों के साथ-साथ बकरियां चराने को भी कहने लगीं। खाने के बदले उसे केवल थोड़े से सूखे चावल (खुद) दिए जाते थे। तओपोई अपने भाइयों के पास नहीं होने के कारण यह सब किसी से कह भी नहीं पाई और अपने दुख को छिपाकर, आंसुओं में ही जीने लगी। केवल छोटी भाभी ही तओपोई के पक्ष में थी और उसे प्यार करती थी। वह उसे छिपाकर कुछ खाने को दे देती थी और उसे स्नेह से देखभाल करती थी।
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कई दिनों तक भाई व्यापार से नहीं लौटे, जिससे तओपोई को उनकी चिंता सताने लगी। वह सोने की कुटिया छोड़कर बकरियों के साथ जंगल में चली गई। एक दिन, बड़ी भाभी की बकरी जंगल में खो गई, जिसे खोजने के दौरान पास के गांव से कुछ आवाजें सुनाई दीं। जब वह वहां पहुंची, तो उसने देखा कि कुंवारी लड़कियां खुदुरकुनी ओषा की पूजा कर रही थीं। उन्होंने इस त्योहार की महानता और महत्व के बारे में बताया, जिससे तओपोई ने इस पूजा को करने का निश्चय किया।
तओपोई ने नदी किनारे रेत से मूर्तियां बनाईं और भाइयों की कुशलता की कामना करते हुए खुदुरकुनी ओषा की पूजा की। उसके पास कुछ नहीं था, तो उसने भाभियों द्वारा दिए गए सूखे चावल (खुद) को मां मंगला के सामने भोग के रूप में अर्पित किया। यह पूजा रविवार के दिन हुई थी। उसने 5 रविवार तक यह पूजा की, और उसकी प्रार्थना सुनकर मां मंगला प्रकट हुईं। मां के आशीर्वाद से तओपोई को उसका खोया हुआ सम्मान और भाई मिले। भाइयों के आने के बाद, उन्होंने तओपोई पर हुए अत्याचारों को जानकर सभी भाभियों को दंडित किया, सिवाय छोटी भाभी के, जो तओपोई की सच्ची सखी थी।
अपनी बहन की दुर्दशा जानने पर, सभी भाइयों ने सर्वसम्मति से अपनी पत्नियों को सबक सिखाने का फैसला किया। भाइयों ने तओपोई को देवी के रूप में सजाया और फिर पत्नियों से कहा कि वे जहाजों पर जाकर अपने पतियों का स्वागत करें जब वे घर वापस आएंगे। तब तओपोई ने सबसे छोटी पत्नी को छोड़कर सभी पत्नियों की नाक काटकर अपने कष्टों का बदला लिया। तओपोई ने छोटी भाभी को सम्मान देकर उसके प्रति आभार प्रकट किया।
खुदुरकुनी ओषा, तओपोई की करुण कथा और भाइयों की मंगलकामना से जुड़ा यह पर्व, ओड़िशा की समृद्ध संस्कृति और परंपरा का प्रतीक है। यह त्यौहार सिखाता है कि सच्चे दिल से की गई प्रार्थना कभी व्यर्थ नहीं जाती। हर साल, अविवाहित लड़कियां इस पर्व को मनाकर अपने भाइयों की खुशहाली और दीर्घायु की कामना करती हैं, और इस प्रकार यह पर्व पीढ़ियों से चली आ रही धार्मिक आस्थाओं और सामाजिक मूल्यों को मजबूत करता है।
FAQ
Q-1 What is the significance of Khudurukuni OSHA? || खुदुरुकुनी ओषा का क्या महत्व है?
खुदुरुकुनी ओषा ओडिशा की एक प्राचीन और महत्वपूर्ण परंपरा है, जिसे विशेष रूप से कुंवारी लड़कियां अपने भाइयों की दीर्घायु और समृद्धि के लिए मनाती हैं। यह पर्व भाद्रपद माह में आता है, जब लड़कियां माँ मंगला और तओपोई की पूजा करती हैं। खुदुरुकुनी ओषा की कथा में तओपोई की कहानी सुनाई जाती है, जो अपने भाइयों की सुरक्षा के लिए संघर्ष करती हैं। इस व्रत का धार्मिक महत्व नारी शक्ति, धैर्य और भाई-बहन के रिश्ते की महत्ता को दर्शाता है। इस अवसर पर विशेष भोग चढ़ाए जाते हैं और लोकगीत गाए जाते हैं, जो परंपरा को जीवित रखते हैं।
Q-2 How to celebrate Khudurukuni? || खुदुरुकुनी कैसे मनाएं?
खुदुरुकुनी ओषा ओडिशा की पारंपरिक पर्व है, जिसे खासतौर पर कुंवारी लड़कियां अपने भाइयों की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि के लिए मनाती हैं। इसे भाद्रपद महीने के रविवार को मनाया जाता है। इस दिन, लड़कियां सुबह स्नान कर साफ कपड़े पहनती हैं और माँ मंगला तथा तओपोई की पूजा करती हैं। मिट्टी से बनी खुदुरुकुनी की मूर्तियों को सजाया जाता है और उन्हें विशेष भोग अर्पित किया जाता है, जिसमें सूखा चावल (खुद), उखुड़ा (गुड़ से मीठा किया हुआ तला हुआ धान), चूड़ा (चपटा धान), कांति ककुड़ी (एक प्रकार का काँटेदार खीरा), लिया (तला हुआ धान), मिश्री (चीनी की मिठाई), नारियल और सभी प्रकार के फल प्रमुख होता है। पूजा के बाद लड़कियां लोकगीत गाती हैं और व्रत कथा सुनती हैं, जिसमें तओपोई की त्याग और साहस की कथा होती है।
Q-3 Who is Maa Khudurukuni? || माँ खुदुरुकुनि कौन हैं?
माँ खुदुरुकुनी ओडिशा की एक प्रसिद्ध लोक देवी हैं, जिनकी पूजा खासकर कुंवारी लड़कियों द्वारा की जाती है। इन्हें शक्ति और समर्पण का प्रतीक माना जाता है। खुदुरुकुनी ओषा, जो भाद्रपद महीने के रविवार को मनाया जाता है, माँ खुदुरुकुनी को समर्पित है। यह पर्व तओपोई की कहानी से जुड़ा है, जिसमें वह अपने भाइयों की भलाई और उनके सुख-समृद्धि के लिए कठिनाइयों का सामना करती है। माँ खुदुरुकुनी को कठिन परिस्थितियों में धैर्य और समर्पण की प्रतीक मानकर पूजा जाता है, जिससे लड़कियां अपने परिवार के लिए आशीर्वाद मांगती हैं।
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