April 16, 2024 | by cultureodisha.com
भारतीय संस्कृति और त्योहारों की धरोहर में शिव और शक्ति की अद्वितीय भावना को समर्पित एक महत्वपूर्ण त्योहार है “अशोक अष्टमी” या “अशोकाष्टमी“. यह त्योहार मुख्य रूप से ओडिशा के प्रसिद्ध लिंगराज मंदिर में मनाया जाता है। भारतीय साहित्य और धर्मशास्त्र के अनुसार, इस त्योहार का महत्वपूर्ण पर्व भगवान राम के अद्वितीय यात्रा से जुड़ा है।
अशोकाष्टमी का आयोजन चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को किया जाता है। इस दिन लिंगराज मंदिर में रुकुना रथ यात्रा का आयोजन होता है, जिसमें भगवान लिंगराज की रथ यात्रा की जाती है। यह यात्रा पांच दिनों तक चलती है, जिसमें रथ को भक्तों द्वारा लिंगराज मंदिर से रामेश्वर मंदिर तक खींचा जाता है।
अशोकाष्टमी के पारंपरिक महत्व को समझने के लिए हमें पुरातत्त्विक साक्ष्यों की ओर मुख्य ध्यान देना चाहिए। इस त्योहार का महत्व और इसकी परंपरा को जानने के लिए हमें लिंगराज मंदिर के इतिहास, प्राचीनता, और पौराणिक कथाओं की ओर देखना चाहिए।
शिवरात्रि की तरह, रुकुना रथ यात्रा को लिंगराज मंदिर में एक महत्वपूर्ण त्योहार माना जाता है। यह चैत्र माह में शुक्ल अष्टमी (शुक्ल पखवाड़े का आठवां दिन) को मनाया जाता है। त्रेता युग के दौरान, भगवान राम ने वनवास काल (14 वर्ष के वनवास) के दौरान एकाम्र क्षेत्र का भी दौरा किया था। लिंगराज महाप्रभु ने भी उन्हें अतिथि के रूप में प्राप्त किया और उनसे यहां कुछ समय बिताने का अनुरोध किया। जिस स्थान पर भगवान राम रुके थे वह स्थान रामेश्वर के नाम से जाना जाता है। भगवान राम का जन्मदिन एकाम्र क्षेत्र में रहने के दौरान पड़ा। लिंगराज महाप्रभु देवी पार्वती, गणेश और कार्तिकेय के साथ अपने रथ पर सवार होकर भगवान राम को शुभकामना देने के लिए रामेश्वर मंदिर गए थे और यह त्योहार लिंगराज महाप्रभु की रथ यात्रा के नाम से आज तक मनाया जाता है। यह रथ उत्सव पांच दिनों तक चलता है
रथ यात्रा रुकुना रथ यात्रा या अशोकाष्टमी यात्रा के नाम से भी प्रसिद्ध है। यह त्यौहार “पापा बिनशाकारी यात्रा” माना जाता है अर्थात “वह त्यौहार जो सभी बुराइयों और पापों को नष्ट कर देता है”
एकाम्र पुराण में इस पर्व का वर्णन दो अध्यायों में किया गया है। यही बात स्वर्णाद्रि महोदया और एकाम्र चंद्रिका जैसे बाद के ग्रंथों में भी दोहराई गई है। कपिला संहिता में सात यात्राओं में से एक के रूप में रथ यात्रा भी शामिल है। यह त्योहार इतना लोकप्रिय था कि इसका उल्लेख वाचस्पति मिश्र के तीर्थचिंतामणि, गदाधारा के कलासार, रघुनाथ के कलानिर्णय आदि में मिलता है।
इस दिन, लिंगराज के उत्सव विग्रह (चलंती प्रतिमा), शिवलिंग, जिसके बारे में माना जाता है कि उसे रामचंद्र द्वारा प्रतिष्ठित किया गया था, गोपालिनी (पार्वती), कुमार और नंदिकेश्वर के साथ गोविंदा की छवि को लिंगराज से एक रथ में निकाला जाता है।
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लिंगराज मंदिर भारतीय संस्कृति और पौराणिक कथाओं का एक महत्वपूर्ण स्थल है। इस मंदिर में लिंगराज के पूजन का विशेष महत्व है, जो भगवान विष्णु और भगवान शिव के एक रूप हरिहर को समर्पित है। यहाँ पर अशोकाष्टमी के दौरान बड़ी धूमधाम से यह पूजा आयोजित की जाती है।
अशोकाष्टमी का उत्सव ओडिशा के लोगों के लिए एक महत्वपूर्ण सामाजिक और धार्मिक उत्सव है। यह त्योहार लिंगराज मंदिर के प्रति भक्ति और समर्पण का प्रतीक है, जो भगवान शिव के प्रति लोगों की श्रद्धा को प्रकट करता है।
इस त्योहार का अन्य महत्वपूर्ण पहलू यह है कि यह भगवान राम के यात्रा से जुड़ा हुआ है। लिंगराज मंदिर में रुकुना रथ यात्रा का आयोजन होता है, जो भगवान राम के अद्वितीय यात्रा को स्मरण करता है।
अशोकाष्टमी ओडिशा का एक प्रमुख त्योहार है जो भगवान शिव और भगवान राम की महिमा को साझा करता है। यह त्योहार ओडिशा की संस्कृति और धार्मिक परंपरा का महत्वपूर्ण हिस्सा है और लोगों को एक साथ लाने वाला सामाजिक और धार्मिक अवसर प्रदान करता है
FAQ
Q-1 रुकुना रथ यात्रा क्या है ??
रुकुना रथ यात्रा, लिंगराज मंदिर में एक महत्वपूर्ण त्योहार है। यह उत्सव चैत्र मास के शुक्ल अष्टमी को मनाया जाता है। भक्त रथ यात्रा के साथ धार्मिक अनुष्ठानों में भाग लेते हैं, जिससे उनकी आत्मिक उन्नति होती है और मंदिर में शिव की आराधना की जाती है।
Q-2 लिंगराज मंदिर का क्या महत्व है?
लिंगराज मंदिर, ओडिशा की एक प्रमुख धार्मिक स्थल है। यह विशाल मंदिर भगवान शिव को समर्पित है और शिवरात्रि के उत्सव के दौरान लाखों भक्तों की भेंट होती है। मंदिर की सुंदर वास्तुकला और धार्मिक महत्व उसे राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध बनाते हैं। यहां के प्रति वर्ष लाखों पर्यटक और श्रद्धालु आते हैं ताकि वे अपने आत्मा को शुद्धि और शांति के लिए प्रार्थना कर सकें।
Q-3 क्या लिंगराज मंदिर और जगन्नाथ मंदिर एक ही हैं?
लिंगराज मंदिर और जगन्नाथ मंदिर, दोनों ही ओडिशा के प्रमुख धार्मिक स्थल हैं, लेकिन वे अलग-अलग मंदिर हैं। लिंगराज मंदिर भगवान शिव को समर्पित है, जबकि जगन्नाथ मंदिर भगवान जगन्नाथ को समर्पित है। दोनों ही मंदिर ओडिशा की सांस्कृतिक और धार्मिक धरोहर के महत्वपूर्ण प्रतीक हैं, लेकिन उनके देवता, आचरण और महत्व में अंतर है।
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