संबलपुरी दिन 1 अगस्त को मनाया जाता है, जो कवि संबलपुरी गुरु सत्यनारायण बोहिदार का जन्मदिन है। सत्यनारायण बोहिदार को संबलपुरी भाषा और व्याकरण के अग्रदूत के रूप में जाना जाता है। कवि का जन्म 1 अगस्त, 1913 को सोनपुर में हुआ था। 2013 में, उनके 100वें जन्मदिन पर, पश्चिमांचल (कोशल/पश्चिमी ओडिशा) ने हर साल संबलपुरी दिन मनाने का फैसला किया।
सत्यनारायण बोहिदार ने संबलपुर की कला और संस्कृति का प्रसार किया। इसलिए उनके सम्मान में, हम नृत्य, गीत, नाटक, भोजन और वेशभूषा जैसे सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित करेंगे। सत्यनारायण बोहिदार का जन्म सोनपुर में हुआ था। लेकिन उन्होंने अपने रचनात्मक वर्ष संबलपुर में बिताए। सत्यनारायण बोहिदार ने संबलपुर से स्नातक की उपाधि प्राप्त की और बरगड़ में एक शिक्षक के रूप में अपना करियर शुरू किया। वह संबलपुर जिला स्कूल के छात्र थे और उसी स्कूल में शिक्षक बन गए। उनकी पहली साहित्यिक रचना तब प्रकाशित हुई जब वे दसवीं कक्षा में थे। ऐसा माना जाता है कि उन्होंने संबलपुर साहित्य की नींव रखी। उन्होंने दूसरों और अपने छात्रों को संबलपुरी में लिखने के लिए प्रोत्साहित किया। कई लोग सत्यनारायण बोहिदार को अपना गुरु मानते हैं।
सत्यनारायण बोहिदार ने संबलपुर की कला और संस्कृति को फैलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। “हम सभी से संबलपुरी कपड़े पहनने, नृत्य, गीत, संगीत जैसी संबलपुरी सांस्कृतिक गतिविधियों में शामिल होने, संबलपुरी भोजन खाने और हमारी प्राचीन संस्कृति को दुनिया भर में फैलाने में मदद करने का अनुरोध करते हैं” बोहिदार ने संबलपुरी में एक शब्दकोश और व्याकरण पुस्तक भी तैयार की है। वे “कोसली भाषाकोश” के लेखक हैं। उनकी रचनाओं में टिक छांरा (1975), घावघवो, घुवकुडु और कई अन्य शामिल हैं। ये सभी पुस्तकें कोसली या संबलपुरी में लिखी गई थीं और साथ ही कई कविताएँ भी। उनके गीतों में संबलपुरी संस्कृति के प्रति प्रेम और स्नेह की भावना देखी जा सकती है। उन्होंने संबलपुरी साहित्य को एक अनूठी पहचान भी दी। सत्यनारायण बोहिदार का देहांत 31 दिसंबर 1980 को हो गया, लेकिन उनके महान कार्य उन्हें हमेशा प्रत्येक संबलपुरिया के दिल में जीवित रखेंगे।
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संबलपुरी दिवस का उत्सव न केवल कवि सत्यनारायण बोहिदार के महान योगदान को सम्मानित करता है, बल्कि संबलपुरी संस्कृति और परंपराओं को जीवंत रखने का एक महत्वपूर्ण प्रयास भी है। 1 अगस्त को मनाए जाने वाले इस दिन में नृत्य, गीत, नाटक और संबलपुरी भोजन का आयोजन बोहिदार की विरासत को जीवित रखने और नई पीढ़ी को अपनी जड़ों से जोड़ने का उद्देश्य रखता है। सत्यनारायण बोहिदार के प्रयासों ने संबलपुरी साहित्य और संस्कृति को एक अनूठी पहचान दी है, जिसे हर संबलपुरिया गर्व के साथ संजोता है। उनके द्वारा स्थापित की गई सांस्कृतिक नींव आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनी रहेगी।
FAQ
Q-1 संबलपुरी दिन क्या है?
संबलपुरी दिन, ओडिशा के संबलपुर क्षेत्र का एक प्रमुख त्योहार है, जिसे वहां की सांस्कृतिक धरोहर और परंपराओं का उत्सव मनाने के लिए मनाया जाता है। इस दिन को संबलपुरी वेशभूषा, नृत्य, संगीत और भोजन के साथ हर्षोल्लास से मनाया जाता है। स्थानीय लोग संबलपुरी साड़ी और अन्य पारंपरिक परिधानों में सजते हैं, और संबलपुरी नृत्य एवं संगीत प्रस्तुत करते हैं। यह त्योहार समुदाय के बीच एकता और गर्व की भावना को बढ़ावा देता है। संबलपुरी दिन न केवल संबलपुर की सांस्कृतिक पहचान को सहेजने का प्रयास है, बल्कि नई पीढ़ी को अपनी जड़ों से जोड़ने का एक महत्वपूर्ण माध्यम भी है।
Q-2 अगस्त को संबलपुरी दिवस के रूप में क्यों मनाया जाता है?
अगस्त को संबलपुरी दिवस के रूप में मनाने का प्रमुख कारण कवि सत्यनारायण बोहिदार का जन्मदिन है, जो संबलपुरी भाषा और व्याकरण के अग्रदूत माने जाते हैं। उनका जन्म 1 अगस्त, 1913 को सोनपुर में हुआ था। 2013 में उनके 100वें जन्मदिन पर, पश्चिमांचल (कोशल/पश्चिमी ओडिशा) ने हर साल इस दिन को संबलपुरी दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया। बोहिदार ने संबलपुरी संस्कृति, भाषा और साहित्य को एक नई ऊंचाई दी। उनके सम्मान में, इस दिन संबलपुरी नृत्य, संगीत, नाटक और पारंपरिक भोजन जैसे सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं, जिससे संबलपुरी विरासत को जीवित रखा जा सके।
Q-3 ओडिया और संबलपुरी एक ही हैं?
ओडिया और संबलपुरी भाषा में समानताएं होने के बावजूद, वे अलग-अलग भाषाएं हैं। ओडिया, ओडिशा राज्य की आधिकारिक भाषा है और इसका साहित्यिक इतिहास प्राचीन है। संबलपुरी, जिसे कोसली भी कहा जाता है, पश्चिमी ओडिशा की एक प्रमुख भाषा है। संबलपुरी की अपनी विशिष्ट ध्वनियाँ, शब्दावली और व्याकरण हैं, जो इसे ओडिया से अलग बनाते हैं। सत्यनारायण बोहिदार जैसे विद्वानों ने संबलपुरी भाषा और साहित्य को समृद्ध किया है। ओडिया और संबलपुरी दोनों भाषाएं ओडिशा की सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा हैं, लेकिन उनकी पहचान और महत्व अलग-अलग हैं।
Q-4 संबलपुरी भाषा के जनक कौन हैं?
संबलपुरी भाषा के जनक कवि सत्यनारायण बोहिदार माने जाते हैं। उनका जन्म 1 अगस्त, 1913 को सोनपुर में हुआ था। बोहिदार ने संबलपुरी भाषा, व्याकरण और साहित्य को एक नई पहचान दी। उन्होंने “कोसली भाषाकोश” जैसी महत्वपूर्ण रचनाएं लिखीं और संबलपुरी भाषा का शब्दकोश तैयार किया। उनके प्रयासों ने संबलपुरी साहित्य को समृद्ध किया और इसे व्यापक पहचान दिलाई। 2013 में उनके 100वें जन्मदिन पर, संबलपुरी दिवस की शुरुआत हुई, जिससे उनकी विरासत को सम्मानित किया जा सके। सत्यनारायण बोहिदार के योगदान के कारण उन्हें संबलपुरी भाषा का जनक माना जाता है।
Q-5 संबलपुरी किस लिए प्रसिद्ध है?
संबलपुरी अपनी समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर और कला के लिए प्रसिद्ध है। विशेष रूप से, संबलपुरी साड़ी, जो हाथ से बुनी जाती है, अपनी जटिल डिजाइनों और उत्कृष्ट गुणवत्ता के लिए जानी जाती है। संबलपुरी नृत्य और संगीत भी इस क्षेत्र की पहचान हैं, जिसमें पारंपरिक वाद्ययंत्रों का उपयोग होता है। संबलपुरी भाषा और साहित्य ने भी महत्वपूर्ण योगदान दिया है, जिसमें कवि सत्यनारायण बोहिदार का योगदान अविस्मरणीय है। इसके अलावा, संबलपुरी त्योहार और लोकगीत इस क्षेत्र की जीवंतता और सांस्कृतिक विविधता को दर्शाते हैं। संबलपुरी कला और संस्कृति ने न केवल ओडिशा में, बल्कि पूरे भारत में अपनी पहचान बनाई है।
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