September 12, 2024 | by cultureodisha.com
श्री श्री ठाकुर अनुकूलचंद्र का जीवन और उनके कार्यों का उद्देश्य एक असंगठित और विघटित समाज को एक संगठित और सामंजस्यपूर्ण समाज में बदलना था। वे मानते थे कि जाति, धर्म, रंग, पंथ जैसी सीमाएं समाज को बांटती हैं, जिससे मानवता में अशांति और संघर्ष की स्थिति पैदा होती है। उनके विचारों और साहित्य ने इन सभी अवरोधों को मिटाने का प्रयास किया, ताकि एक बेहतर और एकीकृत समाज का निर्माण हो सके।
श्री श्री ठाकुर अनुकूलचंद्र चक्रवर्ती का जन्म 14 सितंबर, 1888 को अविभाजित भारत के पबना जिले के एक सुदूर गांव हिमायतपुर में हुआ था। 1946 में वे भारत के झारखंड के देवघर आए और वहीं स्थायी रूप से बस गए। वे पर्यावरण के साथ-साथ मानवता के समग्र विकास और कल्याण के लिए एक परोपकारी संगठन “सत्संग” के संस्थापक हैं। सत्संग का मुख्यालय देवघर, झारखंड, भारत में है। हिंदू धर्म और श्री श्री ठाकुर अनुकूलचंद्र के शिष्यों के अनुसार श्री श्री ठाकुर अनुकूलचंद्र को भगवान विष्णु का अंतिम (आज तक का) अवतार माना जाता है। श्री श्री ठाकुर अनुकूलचंद्र के प्रभाव श्री श्री ठाकुर के अनुसार जीवन का मुख्य आदर्श है होना और बनना, अर्थात अस्तित्व और समग्र सामंजस्यपूर्ण विकास, जहाँ व्यक्ति अपने पर्यावरण की सहायता से जी सकता है और विकसित हो सकता है। असंगत, अराजक और विघटित समाज का अनुभव करते हुए, श्री श्री ठाकुर अनुकूलचंद्र समग्र रूप से मानव समाज में सद्भाव और एकीकरण को बढ़ावा देने के लिए सबसे अधिक उत्सुक थे। उनका मानना था कि वास्तविक सद्भाव और एकीकरण तभी अस्तित्व में आ सकता है जब लोग एक सामान्य उद्देश्य के साथ आगे बढ़ेंगे। उन्होंने पूर्ण दृष्टि से देखा और सिखाया कि वास्तव में सभी के लिए मानव जीवन का एक ही लक्ष्य है, जो जीवन का स्रोत है, और केवल एक ही मार्ग है जिस पर जीवन लक्ष्य की ओर बढ़ता है।
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1946 में देवघर (झारखंड) में स्थायी रूप से बसने के बाद, उन्होंने सत्संग की स्थापना की। यह संस्था न केवल धार्मिक शिक्षा प्रदान करती है, बल्कि समाज के हर वर्ग को एक साथ लाने का कार्य भी करती है। श्री श्री ठाकुर का मानना था कि सच्ची एकता और विकास तभी संभव है जब लोग एक सामान्य उद्देश्य की दिशा में काम करें। सत्संग का उद्देश्य मानवता को एकजुट करना और उन्हें अपने अस्तित्व और विकास के प्रति जागरूक करना है।
श्री श्री ठाकुर के विचारों में समाज के हर व्यक्ति के प्रति समानता और प्रेम का भाव था। वे कहते थे कि चाहे हम हिंदू, मुस्लिम, ईसाई, सिख, या किसी भी अन्य धर्म से हों, हमारे खून में एक समानता है। उनके अनुसार, धार्मिक विभाजन समाज को कमजोर करते हैं और मानवता के विकास में बाधा डालते हैं। वे मानते थे कि धर्म का असली उद्देश्य मानवता को प्रेम, सद्भाव और एकता के साथ जोड़ना है।
आज की दुनिया में जहाँ जातीय और धार्मिक संघर्ष बढ़ते जा रहे हैं, ठाकुर अनुकूलचंद्र के विचार हमें शांति और सामंजस्य की ओर ले जाते हैं। उनके अनुसार, हर व्यक्ति का कल्याण एक-दूसरे से जुड़ा हुआ है। वे मानते थे कि यदि हम एक व्यक्ति के विकास में योगदान देते हैं, तो पूरे समाज का विकास सुनिश्चित हो जाता है। वे दूसरों के साथ वैसा ही व्यवहार करने की शिक्षा देते थे जैसा हम अपने साथ चाहते हैं।
श्री श्री ठाकुर की शिक्षाओं में पंचबर्हि, जो जीवन के पांच अनुशासनों का प्रतीक है, एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। वे मानते थे कि पंचबर्हि के मार्ग का अनुसरण करके, मनुष्य अपने अस्तित्व को मजबूत कर सकता है और एक बेहतर समाज का निर्माण कर सकता है।
* पंचबर्हि – बनने के लिए पाँच अनुशासनों का प्रतीक पाँच अग्नियाँ: सर्वशक्तिमान, ऋषियों की सेवा, समान प्रवृत्तियों की विविधताओं का समूह, अस्तित्वगत मार्ग का अनुसरण करने वाले पूर्वजों के प्रति भक्ति, और वर्तमान पूर्णकर्ता सर्वश्रेष्ठ के प्रति आत्म-समर्पण। तो, हम देखते हैं कि श्री श्रीठाकुर कभी जाति, पंथ, धर्म या देश के संदर्भ में नहीं सोचते हैं। वे प्रत्येक व्यक्ति के बारे में समग्र रूप से सोचते हैं। श्री श्री ठाकुर का मानना है कि मत अनेक हो सकते हैं, चाहे जितने भी लोग हों, लेकिन अंतिम लक्ष्य और उद्देश्य एक ही है। श्री श्री ठाकुर का मानना है कि चाहे वे हिंदू हों, मुसलमान हों या ईसाई, या जो भी हों, हर किसी का खून एक ही वंश के अलग-अलग वंश से आता है। धर्म मानव जाति को प्रगतिशील तरीके से प्रबुद्ध करता है, मानव जाति को सद्भाव में बांधता है, संस्कृति के मार्ग पर मनुष्य के अस्तित्व को बनाए रखता है, उसके अस्तित्व को बनने में, समायोजन को बनाए रखने में। यह मनुष्यता को एक सार्थक समन्वयकारी प्रगतिशील उत्थान में ईश्वरत्व की ओर ले जाता है। सत्संग में दिए गए उनके प्रवचन समाज को प्रेम, सेवा और समर्पण के माध्यम से उन्नति की ओर ले जाने की दिशा में थे।
श्री श्री ठाकुर अनुकूलचंद्र का जीवन और उनकी शिक्षाएँ आज भी प्रासंगिक हैं। उनके विचार और कार्य मानवता के लिए एक आदर्श मार्गदर्शन हैं, जो हमें सांप्रदायिकता, संघर्ष और विघटन से बाहर निकालकर शांति और समरसता की ओर ले जाते हैं। उनके द्वारा स्थापित सत्संग संस्था ने एक वैश्विक समाज के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, जो धर्म, जाति और पंथ के परे जाकर मानवता की सेवा के लिए समर्पित है। उनका संदेश स्पष्ट है—”हम सभी एक हैं, और हमें एक-दूसरे के विकास के लिए साथ आना चाहिए।”
FAQ
Q-1 What is the ideology of Sri Sri Thakur? || श्री श्री ठाकुर की विचारधारा क्या है?
श्री श्री ठाकुर अनुकूलचंद्र की विचारधारा मानवता, एकता और सद्भाव पर आधारित है। वे मानते थे कि सभी धर्म और जातियां मानवता के अलग-अलग रूप हैं, और अंतिम उद्देश्य एक ही है—प्रेम, सेवा और समर्पण। उनका सत्संग आंदोलन मनुष्य के आत्म-विकास और समाज में सामूहिक उन्नति के लिए समर्पित था। उन्होंने “होना और बनना” के सिद्धांत पर जोर दिया, जिसमें हर व्यक्ति को अपने अस्तित्व के साथ-साथ समाज के विकास के लिए भी काम करना चाहिए। ठाकुर की विचारधारा समाज में भाईचारे, परस्पर सहयोग और मानव कल्याण को प्राथमिकता देती है।
Q-2 What did Anukul Thakur study? || अनुकूल ठाकुर ने क्या पढाई की?
श्री श्री ठाकुर अनुकूलचंद्र ने प्रारंभिक शिक्षा अपने गाँव हिमायतपुर, बंगाल (अब बांग्लादेश) में प्राप्त की। उन्होंने उच्च शिक्षा के लिए मेडिकल कॉलेज, कोलकाता में दाखिला लिया, जहाँ उन्होंने होम्योपैथी में डिग्री प्राप्त की। हालांकि, उनकी शिक्षा केवल अकादमिक नहीं थी; उन्होंने जीवन के वास्तविक पहलुओं को भी समझा और मानवता की सेवा का मार्ग चुना। ठाकुर का मानना था कि शिक्षा का उद्देश्य आत्म-विकास और समाज की भलाई होना चाहिए। उनके जीवन और कार्यों ने दिखाया कि सही शिक्षा वह है जो व्यक्ति को मानव सेवा और आध्यात्मिक उत्थान के लिए प्रेरित करे।
Q-3 What is the real name of Anukul Thakur? || अनुकूल ठाकुर का असली नाम क्या है?
श्री श्री ठाकुर अनुकूलचंद्र का असली नाम ‘अनुकूलचंद्र चक्रवर्ती’ था। उनका जन्म 14 सितंबर 1888 को बंगाल के हिमायतपुर गाँव (अब बांग्लादेश में) में हुआ था। बचपन से ही उनमें आध्यात्मिकता और समाज सेवा की गहरी प्रवृत्ति थी। उन्होंने अपने जीवन में अनगिनत लोगों को मार्गदर्शन दिया और उन्हें सही दिशा दिखाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके अनुयायी उन्हें ‘श्री श्री ठाकुर’ के नाम से जानते हैं, और उन्होंने मानवता की सेवा के लिए एक अनुकरणीय जीवन जिया। उनके विचार और शिक्षाएं आज भी लोगों को प्रेरित करती हैं।
Q-4 Who is the wife of Anukul Thakur? || अनुकूल ठाकुर की पत्नी कौन है?
श्री श्री ठाकुर अनुकूलचंद्र की पत्नी का नाम सरोशीबाला देवी था। उनका विवाह 1906 में संपन्न हुआ, जब ठाकुर अनुकूलचंद्र लगभग 17 वर्ष के थे। सरोशीबाला देवी ने ठाकुर के जीवन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, उनके सिद्धांतों और विचारों का पालन करते हुए परिवार और समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को निभाया। उनके सहयोग और समर्थन ने ठाकुर के मिशन को आगे बढ़ाने में विशेष योगदान दिया। ठाकुर और शुभधामयी देवी का संबंध प्रेम, सेवा और आध्यात्मिक समर्पण का प्रतीक है, जो आज भी उनके अनुयायियों के लिए प्रेरणा का स्रोत है।
Q-5 What is istavriti? || इष्टवृति क्या है?
इष्टवृति का तात्पर्य उन कर्मों और कार्यों से है जो व्यक्ति अपने इष्ट (अध्यात्मिक गुरु या भगवान) की सेवा और संतुष्टि के लिए करता है। यह अवधारणा श्री श्री ठाकुर अनुकूलचंद्र द्वारा प्रचलित की गई, जिसमें मानवता की सेवा, सच्चाई का पालन और ईश्वर के प्रति समर्पण मुख्य उद्देश्य होते हैं। इष्टवृति का अभ्यास जीवन के हर पहलू में नैतिकता और सकारात्मकता बनाए रखने में सहायक होता है। इस विचारधारा के अनुसार, अपने इष्ट की सेवा करने से व्यक्ति का मन शुद्ध होता है और उसे जीवन के उच्चतर उद्देश्यों की प्राप्ति में सहायता मिलती है।
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